Thursday, September 22, 2011

तुम बिन... तन्हाइयाँ!












  
यही मौसम यही समा था
ये दिल भी क्या आवारा था
कैसा मस्त वो ज़माना था
मन ख़ुशी के गीत गुनगुनाता था

ये हवा भी क्या दीवानी थी
करती अपनी मनमानी थी
बारिश की बूंदे हम पे उडाती थी
और मन के मोर को गुदगुदाती थी

आपकी कातिल नज़रें वार करती थी
और इस नादां दिल को घायल करती थी
फ़िर प्यार भी हम से बेशुमार करती थी
और हमे उस प्यार में पागल करती थी

आज भी वही मौसम है वही समा है
शाम आज भी उतनी ही जवान है
आज बारिश की बूँदें आपकी यादें लेकर आयीं हैं
इन बेकरार नैनों में आँसू लेकर आयीं हैं

इन होठों पे आपका नाम अब भी आता है
इस दिल में आपका ख्याल अब भी आता है
अब यही समा आपकी याद में रुलाता है
आपसे मिलने को ये मन खूब छटपटाता है

बेकरार हैं ये नैन आपकी एक झलक देख पाने को
बेचैन है ये मन आपकी एक मुस्कान देख पाने को
कंपकंपाते हैं ये हाथ आपको फिरसे छू पाने को
लपलपाता है ये मन आपको बाहों में भर पाने को

हर झोंका हवा का आपकी याद दिलाता है
जैसे हर पल आपको दिल के और करीब लाता है
बीते दिन याद करके मन मंद-मंद मुस्काता है
देखते हैं कौनसा करिश्मा फ़िर हमें मिलाता है! 

(Another attempt at Hindi Poetry - 12.09.2011)

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