Sunday, May 31, 2015

वो मकान... !!!






वो मकान जिसे हम घर केहते हैं,
कोने मे खडा हमारा इंतज़ार कर रहा है,
ऐसा हम सोचते हैं.… 


पर इंतज़ार तो हम कर रहे है,
घर में जाने का, मुस्कुराने का,
कुछ पल ख़ुशी से जीने का… 


देखा है दुनिया की भीड़ में सुकून नहीं मिलता,
अपने आप संग बिताने को वक़्त नहीं मिलता,
इसीलिए घर जैसा दुनिया में कोई आसरा नहीं मिलता… 


एक सौ बीस साल पुराना वो मकान,
जिसकी छत बारिशों में टपकती है,
उन टपकती हुई बूंदों से ही तो खुशियाँ छलकती है…


और आँगन की मिट्टी जब हवा से उड़ती है,
धूल बनके सारे घर में फैलती है,
सुकून की एक चादर जैसे उस धूल से बिछती है… 


वो फर्श जिसपे गर्मियों में भी ठंडक मिलती है,
लगता है हमारे मन को वो भी खूब समझती है,
धरती पर यही ज़मीन है जो हमें सबसे ज्यादा अपनाती है… 


दीवारों के रंग जो फीके पड़ चुके है,
उन रंगों में आज भी हमारा बचपन चमकता है,
जैसे बीता हुआ कल इन दीवारों में बसा हो… 


वो खुशबू जो घर में हमेशा होती है,
न जाने वो हवा की है या जादू की,
बस वही खुशबू  है खुशियों की,
वही खुशबू है सुकून की…!!!

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