Sunday, July 10, 2016

यादों का खज़ाना..!!






















वक़्त तो बस गुज़रता जाता है,
हम समझ ही नहीं पाते कहाँ गया!

पंछी की तरह उड़ जाता है,
हम खोजते रह जाते धरती की गलियों में!
बीती बातों को बीते ज़माने बीत गए,
हम क़ैद रह गए ना जाने किन पलों में!

जब भी यादों की गठरी खोलें,
खज़ाना सा बिख़र जाता है मन के मंच पे!
प्यारी प्यारी उन बातों को बीते ज़माना गुज़र गया?
छोटी छोटी उन रातों को रूठे ज़माना गुज़र गया!!

आईना जब देखते हैं तब एहसास होता है उम्र का,
मन तो शायद बचपन की गलियों में ही रह गया!
वो लुका-छुपी पकड़ा-पकड़ी के खेल जो खेलते थे हम,
खेलने वाले वो दोस्त के बजाय, या तो वक़्त था या मन!

दिन ना जाने कैसे ज़माने हो गए,
और दोस्त भी दुनिया की भीड़ में खो गए! 
ना जाने क्या जादू चलाया ज़िन्दगी ने हम पे,
हम ज़िद्दी बच्चे से बड़े समझदार हो गए!

वो माँ का आँचल, वो पापा की गोदी,
वो शादी का मंडप, और पहली खुश-खबरी,
अरे! कैसे भाग चला गया वक़्त?
अब तो हमारी गुड़िया भी बड़ी हो गयी!

ऐसे ही ज़िन्दगी बीत जायेगी फ़िसलती रेत की तरह,
और हम सोचते ही रह जाएंगे कि वक़्त गया तो कहाँ गया!!

(Fascinated by the speed of time)

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